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छठे अध्याय का माहात्म्य श्रीमद् भगवद् गीता - राजा ज्ञानश्रुति को किस गीता पाठ से मिली मुक्ति - ShrimadBhagwadGeeta - भगवत गीता

 
 छठे अध्याय का माहात्म्य
श्रीमद् भगवद् गीता 

रैयक मुनि द्धारा राजा को छठवें अध्याय के उपदेश से
राजा ज्ञानश्रुति को
गीता पाठ करने से मिली मुक्ति

Shrimad Bhagwad Geeta - भगवत गीता

 


श्री भगवान् ने कहा - हे लक्ष्मी! गीता के छठे अध्याय का माहात्म्य सुनो। गोदावरी नदी के तट पर स्वर्ग के समान विष्णुपुर नामक एक नगर है। वहां का राजा ज्ञानश्रुति नाम का था, उसकी प्रजा भी धर्मज्ञ थी, लोग राजा की स्तुति करते थे। एक दिन राजा ज्ञानश्रुति अपने महल के उपर बैठा था, उसी समय आकाश मार्ग से उड़ता हुआ हंसांे का झुण्ड आ गया और महल के उपर बैठकर विश्राम करने लगा। बैठते ही उनमें से एक हंस वहां से बड़े वेग से उड़ा उसका उड़ना देखकर साथा के हंसों ने कहा कि इतने उतावले होकर क्यों उड़ते हो? वह हंस लौट कर हंसों से बोला कि उधर देखो, यह कैसा प्रतापवान् राजा बैठा है। इस राजा में रैयक मुनि का तेज व्याप्त हो रहा है। इस बात को सुन कर राजा ने सारथी को बुलाया और रथ में बैठ कर रैयक मुनि को ढूंढने चल दिया। साथ में हज़ार गौ और बहुत सा द्रव्य ले लिया। सारथी राजा की आज्ञा से रथ को हांककर अनेक तीर्थो में रैयक मुनि को ढूंढता हुआ चला, परन्तु राजा के प्रताप से रथ कहीं नही रूका। तब बदरिका आश्रम के समीप पहुंचते ही रथ रूक गया। तब राजा ने जाना इन्हीं, पर्वतों में कहीं मुनि अवश्य रहते हांेगे। यह देख सारथी ने रथा रोक दिया और राजा रथ से उतर मुनि को खोजने लगा। उसने आगे जाकर एक जगह देखा कि एक तपेश्वरी बैठा है। उसके प्रकाश से चारों ओर सुर्य जैसी किरणें निकल रही है। राजा ने समझ लिया कि यही रैयक मुनि है।



    फिर हज़ार गौ के सहित रैयक मुनि के पास पहुंचा और सम्पूर्ण सामग्री सामने रखकर दण्डवत् प्रणाम किया। मुनि जी राजा के उपर क्रोधिक होकर बोले-सब माया का विस्तार हमारे सामने से उठा ले जाओ। राजा बहुत भय मानकर विनयपूर्वक बोला - हे मुनीश्वर! आपको यह अद्भुत तेज कहां से प्राप्त हुआ है सो कृपा कर वर्णन कीजिए। रैयक मुनि ने कहा - हे राजा! यह गीता जी की महिमा है। मैं गीता के छठे अध्याय का प्रतिदिन पाठ करता हूं। इसी से देवताओं की दुःसह तेज राशि को मैंने पाया है और तू गीता के अभ्यास से रहित है। राजा ने भी मुनि से गीता के छठे अध्याय के माहात्म्य को जाना और उसका पाठ करके मुक्त हो गया। नारायण जी कहने लगे- हे लक्ष्मी जी! जो मनुष्य इस छठे अध्याय का नित्या पाठ करते हैं वे निःसन्देह विष्णुलोक को प्राप्त होते है।

इति श्री पद्य पुराणे सती-ईश्वरसंवादे उतराखंडे गीता माहात्म्य नाम षष्ठो-अध्यायः समाप्तः ।।

प्रदीप‘ श्री मद् भगवद् गीता

राजा ज्ञानश्रुति को किस गीता पाठ से मिली मुक्ति  


 

 


 

छठे अध्याय का माहात्म्य श्रीमद् भगवद् गीता - राजा ज्ञानश्रुति को किस गीता पाठ से मिली मुक्ति - ShrimadBhagwadGeeta - भगवत गीता छठे अध्याय का माहात्म्य श्रीमद् भगवद् गीता - राजा ज्ञानश्रुति को किस गीता पाठ से मिली मुक्ति - ShrimadBhagwadGeeta - भगवत गीता Reviewed by Shiv Rana RCM on March 21, 2021 Rating: 5

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