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आठवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता अष्टमो-अध्याय के पाठ में ब्राह्मण को बकरे द्धारा सद् उपदेश -Bhagwat Geeta Ashtam Adhyay Mahatam - Part-8

 
 

आठवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता - Bhagwat Geeta Ashtam Adhyay Mahatam - Part-8

अष्टमो-अध्याय के पाठ में ब्राह्मण  
को बकरे द्धारा सद् उपदेश

आठवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता  अष्टमो-अध्याय के पाठ में ब्राह्मण को बकरे द्धारा सद् उपदेश -Bhagwat Geeta Ashtam Adhyay Mahatam - Part-8

         श्री नारायण जी बोले - ‘‘हे लक्ष्मी जी! अब आठवें अध्याय का माहात्म्य सुन - दक्षिण देश नर्वदा नदी के तट पर एक नगर है, उसमें सुशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत धनी था और सन्तों की सेवा करने वाला था। बड़े-बड़े यज्ञ करता था। एक दिन उसने एक सन्त से पूछा - ’’हे ऋषि जी! मेरे सन्तान नहीं है, क्या करूं?‘‘ ऋषिवर ने कहा - ’’तू अजामेध यज्ञ कर! देवी को बकरा चढ़ा वह तुमको पुत्र देगी।‘‘

आठवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता  अष्टमो-अध्याय के पाठ में ब्राह्मण को बकरे द्धारा सद् उपदेश -Bhagwat Geeta Ashtam Adhyay Mahatam - Part-8


    तब उस ब्राह्मण ने यज्ञ करने को एक बकरा मोल लिया। बलि के दिन उसको स्नान करा, मेवा खिलाया और जब उसको मारने लगा, तब बकरा अचानक ही हंस पड़ा। तब ब्राहा्रण ने पूछा, ’’हे बकरे! तू क्यों हंसता है?’’ बकरे ने कहा - ’’पिछले जन्म में मेरे सन्तान नही थी, एक ब्राह्मण ने मुझे भी अजामेध यज्ञ करने को कहा था, सारी नगरी में बकरा ढूंढ़ा, परन्तु हाथ न लगा। ढूंढ़ते ढूंढ़ते एक बकरी का मेमना दूध चूसता दिखाई दिया। मैने उस मेमने समेत बकरी को मोल ले लिया। जब बकरी के स्तन से छुड़ाकर यज्ञ करने लगा, तब बकरी बोली, ’’ अरे ब्राह्मण! तू ब्राह्मण नहीं, जो मेरे पुत्र को होम मे देने लगा है। तू महापापी है! यह कभी सुना है कि पराये पुत्र को मारने से किसी ने पुत्र पाया हो। तू अपनी सन्तान के लिए मेरे पुत्र को मारता है, तू निर्दयी भी है, तेरे पुत्र नही होगा।’’ उस बकरी ने बहुत कहा पर मैने होम कर ही दिया। तब बकरी ने शाप दिया कि तेर भी गला इसी भांति कटेगा। इतना कह तड़पकर बकरी भी मर गई। कई दिन बीते, मेरी भी मृत्यु हुई। यमदूत मारते-मारते धर्मराज के पास ले गये। तब धर्मराज ने कहा - ’’इसको नरक में डाल दो, यह बड़ा पापी है।’’ वह नरक भोगकर बानर की योनि मिली। एक बाजीगर ने मोल लिया। वह गले में रस्सी डाल कर द्धार-द्धार सारा दिल मांगता फिरता, पर खाने को कम ही दिया करता था। जब बानर की देह से छूटा तो कुते का जन्म पाया। एक दिन मैंने किसी की रोटी चुरा कर खाई। उसने ऐसी लाठी मारी कि पीठ टूट गई। उस दुःख से मेरी देह छूट गई। फिर घोड़े की देह पाई, उस घोड़े को एक भटियारे ने मोल लिया। वह सारा दिन चलाया करता, खाने-पीने की खबर न लेता, रात पड़ती तो एक छोटी सी रस्सी के साथा बांध छोड़ता, ऐसा बांधता कि मैं मक्खी भी नहीं उड़ा सकूं। एक दिन दो बालक एक कन्या मेरे उपर चढ़ कर मुझे चलाने लगे। वहां अत्यन्त कीचड़ था। मैं उसमें फंस गया, उपर से वह मारने लगे।



    वहां मेरा अन्त हुआ। इस भांति अनेक जन्म भोगे। अब बकरे का जन्म पाया, मैंने जाना था जो इसने मुझे मोल लिया है, मैं सुख पाउंगा, मगर तू तो छुरा लेकर मारने लगा हैैै। ’’तब ब्राह्मण ने कहा - ’’हे बकरे! तुझे भी जान प्यारी है। जैसे चिड़ियों को कंकर मारने से वह आग उड़ जाती है। अव मैं अपने नेत्रों से देखी हुई बात कहता हूं, सो सुन - कुरूक्षेत्र में एक राजा स्नान करने आया। उसका नाम चन्द्र सुशर्मा था। उसने ब्राह्मण से पूछा कि ग्रहण में कौन सा दान करूं। उसने कहा राजन्! काले पुरूष का दान कर। तब राजा ने काले लोहे का पुरूष बनाया। नेत्रों में लाल जड़वा सोने के भूषण पहनाकर तैयार किया। राजा स्नान करने चला गया। स्नान करके दान किया तो वह काला पुरूष हंसा। राजा डर गया, कहे कोई बड़ा अवगुण हुआ है जो लोहे का पुरूष हंसा है। तब राजा ने बहुत दान किया, वह फिर हंसा। तब ब्राहा्रण से पूछा,



    ’’हे ब्राह्मण! तू मुझे लेगा।’’ तब ब्राह्मण ने कहा, ’’ मैंने तेरे जैसे कई पचाये है।’’ तब काले पुरूष ने कहा, ’’तू मुझको वह कारण बता जिस कारण तूने अनेक दान पचाये है।’’ तब ब्राह्मण ने कहा, जो गुण मेरे में है, सो मैं जानता हूं, तब वह काला पुरूष कह-कह कर फट गया उसमें से एक और कालिका की मूर्ति निकल आई, तब ब्राह्मण ने श्री गीता जी के आठवें अध्याय का पाठ किया। तब उस कालिका की मूर्ति ने सुनकर देह पलटी, जल की अंजली भर के उस ब्राहा्रण ने मूर्ति पर जल छिड़का, जल के छूले से तब उसकी देह छूटी, दिव्य देही पाई। विमान पर वैकुण्ठ को गई। तब उस मेमने ने पूछा, ’’तुम्हारे में भी कोई ऐसा गीता पाठी है जिससे पाठ सुनकर मैं भी अधम देह से छूटूं।’’ तब उस ब्राहा्रण ने कहा - ’’मैं वेद पाठी हूं, उस नगर में एक साधु गीता पाठी है उससे तू भी गीता का पाठ कर तुम्हारा भी उद्धार होगा।’’ तब ब्राहाण श्री गीता जी का पाठ करने लगा। श्री नारायण जी ने कहा-’’हे लक्ष्मी जी! यह गीता जी के आठवें अध्याय का माहात्म्य है जो आपने सुना है।’’

      

इति श्री पद्य पुराणे उतराखंडे सती-ईश्वरसंवादे गीता माहात्म्य नाम अष्टमो-अध्यायः समाप्तः ।। 

प्रदीप‘ श्री मद् भगवद् गीता









 

 



आठवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता - Bhagwat Geeta Ashtam Adhyay Mahatam - Part-8

अष्टमो-अध्याय के पाठ में ब्राह्मण  
को बकरे द्धारा सद् उपदेश

    

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