रामायण
मनका - 108
रघुपति राघव राजाराम।
पतितपावन सीताराम ।।
जय रघुनन्दन जय घनश्याम।
पतितपावन सीताराम ।।
1 भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे ।
दूर करो प्रभु दुःख हमारे।।
दशरथ के घर जन्मे राम।
पतितपावन सीताराम ।।
2 विश्वामित्र मुनीश्वर आये।
दशरथ भूप से वचन सुनाये।
संग में भेजे लक्ष्मण राम।
पतितपावन सीताराम ।।
3 वन में जाये ताड़का मारी।
चरण छुआए अहिल्या तारी।।
ऋषियों के दुःख हरते राम।।
पतितपावन सीताराम ।।
4 जनक पुरी रघुनन्दन आये।
नगर निवासी दर्शन पाये।।
सीता के मन भाये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
5 रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया।
सब राजों का मान घटाया।।
सीता ने वर पाये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
6 परशुराम क्रोधित हो आये।
दुष्ट भूप मन में हरषाये।।
जनक राय ने किया प्रणाम।
पतितपावन सीताराम ।।
7 बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी।
संत नही होते अभिमानी ।।
मीठी वाणी बोले राम।
पतितपावन सीताराम ।।
8 लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो।
जो कुछ दण्ड दास को दीजो।।
धनुष तोड़या मैं हूं राम।
पतितपावन सीताराम ।।
9 लेकर के यह धनुष चढ़ाओ।
अपनी शक्ति मुझे दिखलाओ।।
छूवत चाप चढ़ाये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
10 हुई उर्मिला लखन की नारी।
श्रुति कीर्ती रिपुसूदन प्यारी।।
हुई माण्डवी भरत के बाम।
पतितपावन सीताराम ।।
11 अवधपुरी रघुनन्दन आये।
घर-घर नारी मंगल गाये।।
बारह वर्ष बिताये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
12 गुरू वशिष्ठ से आज्ञा लीनी।
राज तिलक तैयारी कीनी।।
कल को हांेगे राजा राम।
पतितपावन सीताराम ।।
13 कुटिल मंथरा ने बहकायी।
कैकई ने यह बात सुनाई।।
दे दो मेरे दो वरदान।
पतितपावन सीताराम ।।
14 मेरी विनती तुम सुन लीजो
भरत पुत्र को गददी दीजो।।
होत प्रात वन भेजो राम।
पतितपावन सीताराम ।।
15 धरनी गिरे भूप तत काला।
लागा दिल में सूल विशाला।।
तब सुमंत बुलवाये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
16 राम पिता को शीश नवाये।
मुख से वचन कहा नहीं जाये।।
कैकयी वचन सुनयो राम।
पतितपावन सीताराम ।।
17 राजा के तुम प्राण पियारे।
इनके दुःख हरोगे सारे।।
अब तुम वन में जाओ राम।
पतितपावन सीताराम ।।
18 वन में चैदह वर्ष बिताओ।
रघुकुल रीति-नीति अपनाओ।।
आग इच्छा तेरी राम।
पतितपावन सीताराम ।।
19 सुनत वचन राघव हर्षाए।
माता जी के मन्दिर आये।।
चरण कमल में किया प्रणाम।
पतितपावन सीताराम ।।
20 माता जी मै तो वन जाउं।
चैदह वर्ष बाद फिर आउं।।
चरण कमल देखूं सुख धान।
पतितपावन सीताराम ।।
21 सुनी शूलसम जब वह बानी।
भू पर गिरी कौशल्यारानी।।
धीरज बंधा रहे श्रीराम।
पतितपावन सीताराम ।।
22 समाचार सुनि लक्ष्मण आये।
धनुष बाण संग परम सुहाये।।
बोले संग चलूंगा राम।
पतितपावन सीताराम ।।
23 सीताजी जब यह सुन पाई।
रंग महल से नीचे आई।।
कौशल्या को किया प्रणाम।
पतितपावन सीताराम ।।
24 मेरी चूक क्षमा कर दीजो।
वन जाने की आज्ञा दीजो।।
सीता को समझाते राम।
पतितपावन सीताराम ।।
25 मेरी सीख सिया सुन लीजो।
सास सुसर की सेवा कीजो।।
मुझको भी होगा विश्राम।
पतितपावन सीताराम ।।
26 मेरा दोष बता प्रभु दीजो।
संग मुझे सेवा में लीजो।।
अद्र्धागिनी तुम्हारी राम।
पतितपावन सीताराम ।।
27 राम लखन मिथिलेश कुमारी।
वन जाने की करी तैयारी।।
रथ में बैठ गये सुख धाम।
पतितपावन सीताराम ।।
28 अवधपुरी के सब नर नारी।
समाचार सुन व्याकुल भारी।।
मचा अवध में अति कोहराम।
पतितपावन सीताराम ।।
29 श्रृंगवेरपुर रघुवर आये।
रथ को अवधपुरी लौटाये।।
गंगा तट पर आये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
30 केवट कहे चरण धुलवाओ।
पीछे नौका में चढ़ जाओ।।
पत्थर कर दी नारी राम।
पतितपावन सीताराम ।।
31 लाया एक कठौता भारी।
चरण कमल धोये सुखकारी।।
नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम।
पतितपावन सीताराम ।।
32 उतराई में मुदरी दीनी।
केवट ने यह विनती कीनी।
उतराई नहीं लूंगा राम।
पतितपावन सीताराम ।।
33 तुम आये हम घाट उतारे।
हम आयेंगे घाट तुम्हारे।।
तब तुम पार लगायो राम।
पतितपावन सीताराम ।।
34 भरद्धाज आश्रम पर आए।
राम लखन ने शीष नवाए।।
एक रात कीन्हां विश्राम।
पतितपावन सीताराम ।।
35 भाई भरत अयोध्या आये।
कैकई को कटु वचन सुनाये।।
क्यों तुमने वन भेजे राम।
पतितपावन सीताराम ।।
36 चित्रकूट रघुनंदन आये।
वन को देख सिया सुख पाये।।
मिले भरत से भाई राम।
पतितपावन सीताराम ।।
37 अवधपुरी को चलिए भाई।
ये सब कैकई की कुटिलाई।।
तनिक दोष नहीं मेरा राम।
पतितपावन सीताराम ।।
38 चरण पादुका तुम ले लीजो।
दर्शन करके पूजा कीजो।।
भरत ने कंठ लगाये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
39 आगे चले राम रघुराया।
निशाचरों का वंश मिटायो।।
ऋषिओं के हुऐ पूरन काम।
पतितपावन सीताराम ।।
40 जनस्थान आए रघुराई।
शूर्पनखा की नाक कटाई।।
खरदूषन को मारे राम।
पतितपावन सीताराम ।।
41 पंचवटी रघुनन्दन आए।
कनक मृग मारीच संग धाये।।
लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम।
पतितपावन सीताराम ।।
42 रावण साधु वेष में आया।
भूख ने मुझको बहुत सताया।।
भिक्षा दो यह धर्म का काम।
पतितपावन सीताराम ।।
43 भिक्षा लेकर सीता आई।
हाथ पकड़ रथ में बैठाई।।
सूनी कुटिया देखी राम।
पतितपावन सीताराम ।।
44 धरनी गिरे राम रघुराई।
सीता के बिन व्याकुलताई।
हे प्रिया सीते, चीखे राम।
पतितपावन सीताराम ।।
45 लक्ष्मण, सीता छोड़ नही तुम आते।
जनक दुलारी नहीं गंवाते।।
तुमने सभी बिगाड़े काम।
पतितपावन सीताराम ।।
46 कोमल बदन सुहासिनी सिते।
तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते।
लगे चांदनी-जैसे घाम।
पतितपावन सीताराम ।।
47 सुन री मैना, सुन रे तोता।
मैं भी पंखो वाला होता।।
वन वन लेता ढूंढ तमाम।
पतितपावन सीताराम ।।
48 सुन रे गुलाब, चमेली, जूही।
चम्पा मुझे बता दे तू ही।।
सीता कहां, पुकारे राम।
पतितपावन सीताराम ।।
49 हे नाम सुनो मेरे मन हारी।
कहीं देखी हो जनक दुलारी।।
तेरी जैसी चोटी श्याम।
पतितपावन सीताराम ।।
50 श्यामा हिरनी तू ही बता दे।
जनक नन्दनी मुझे मिला दे।।
तेरे जैसी आंखें श्याम।
पतितपावन सीताराम ।।
51 हे अशोक, मम शोक मिटा दे।
चन्द्रमुखी से मुझे मिला दे।।
होगा तेरा सच्चा नाम।
पतितपावन सीताराम ।।
52 वन वन ढूंढ रहे रघुराई।
जनक दुलारी कहीं न पाई।।
गृद्धराज ने किया प्रणाम।
पतितपावन सीताराम ।।
53 चख चख की फल शवरी लाई।
प्रेम सहित पाये रघुराई।।
ऐसे मीठे नहीं है आम।
पतितपावन सीताराम ।।
54 विप्र रूप धरि हनुमत आए।
चरण कमल में शीश नवाये।।
कन्धे पर बैठाये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
55 सुग्रीव से करी मिलाई।
अपनी सारी कथा सुनाई।।
बाली पहुंचाया निज धाम।
पतितपावन सीताराम ।।
56 सिंहासन सुग्रीव बिठाया।
मन में वह भारी पछिताया।।
वर्षा ऋतु आई हे राम।
पतितपावन सीताराम ।।
57 हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ।
वानरपति को यूं समझाओ।।
सीता बिन व्याकुल है राम।
पतितपावन सीताराम ।।
58 देश देश वानर भिजवाए।
सागर के सब तट पर आए।।
सहते भूख प्यास और घाम।
पतितपावन सीताराम ।।
59 सम्पाती ने पता बताया।
सीता को रावण ले आया।।
सागर कूद गए हनुमान।
पतितपावन सीताराम ।।
60 कोने कोने पता लगाया।
भगत बिभीषन का घर पाया।।
हनुमान को किया प्रणाम।
पतितपावन सीताराम ।।
61 हनुमान उपवन में आए।
वृ़क्ष तले सीता को पाये।।
आंसू बरसे आठो याम।
पतितपावन सीताराम ।।
62 रावण संग निशिचरी लाके।
सीता को बोला समझा के।।
मेरी ओर तुम देखो बाम।
पतितपावन सीताराम ।।
63 मन्दोदरी बना दूं दासी।
सब सेवा में लंका वासी।।
करो भवन चलकर विश्राम।
पतितपावन सीताराम ।।
64 चाहे मस्तक कटे हमारा।
मैं नही देखूं बदन तुम्हारा।।
मेरे तन मन धन है राम।
पतितपावन सीताराम ।।
65 उपर से मुद्रिका गिराई।
सीता जीे ने कंठ लगाई
हनुमान ने किया प्रणाम।
पतितपावन सीताराम ।।
66 मुझको भेजा है रघुराया।
सागर कूद यहां मैं आया।।
मैं हूं राम दास हनुमाना।
पतितपावन सीताराम ।।
67 माता की आज्ञा मैं पांउ।
भूख लगी मीठे फल खंाउ।।
पीछे मैं लूंगा विश्राम।।
पतितपावन सीताराम ।।
68 वृक्षों को मत हाथ लगाना।
भूमि गिरे मधुर फल खाना।।
निशाचरों का है यह धाम।
पतितपावन सीताराम ।।
69 हनुमान ने वृक्ष उखाड़े।
देख देख माली ललकारे।।
मार-मार पहुंचाये धाम।
पतितपावन सीताराम ।।
70 अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुंचाया।
इन्द्रजीत फांसी ले आया।।
ब्रहमफांस से बंधे हनुमान।
पतितपावन सीताराम ।।
71 सीता को तुम लौटा दीजो।
उन से क्षमा याचना कीजौ।।
तीन लोक के स्वामी राम।
पतितपावन सीताराम ।।
72 भगत बिभीषण ने समझाया।
रावण ने उसको धमकाया।।
सनमुख देख रहे हनुमान।
पतितपावन सीताराम ।।
73 रूई, तेल, घृत, वसन मंगाई।
पूंछ बांध कर आग लगाई।।
पूंछ घुमाई है हनुमान।
पतितपावन सीताराम ।।
74 सब लंका में आग लगाई।
सागर में जा पूंद बुझाई।।
हृदय कमल में राखे राम।
पतितपावन सीताराम ।।
75 सागर कूद लौट कर आये।
समाचार रघुवर ने पाये।।
जो मांगा सो दिया इनाम।
पतितपावन सीताराम ।।
76 वानर रीछ संग में लाए।
लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए।।
लगे सुखाने सागर राम।
पतितपावन सीताराम ।।
77 सेतू कपि नल नील बनावें।
राम-राम लिख सिला तिरावें।।
लंका पहुंचे राजा राम।
पतितपावन सीताराम ।।
78 निशाचरों की सेना आई।
गरज-तरज कर हुई लडाई।।
वानर बोले जय सिया राम।
पतितपावन सीताराम ।।
79 इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई।
धरनी गिरे लखन मुरझाई।।
चिन्ता करके रोये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
80 जब मैं अवधपुरी से आया।
हाय पिता ने प्राण गंवाया।।
वन में गई चुराई बाम।
पतितपावन सीताराम ।।
81 भाई तुमने भी छिटकाया।
जीवन में कुछ सुख नहीं पाया।।
सेना में भारी कोहराम।
पतितपावन सीताराम ।।
82 जो संजीवनी बूटी को लाए।
जो भाई जीवित हो जाये।।
बूटी लायेगा हनुमान।
पतितपावन सीताराम ।।
83 जब बूटी का पता न पाया।
पर्वत ही लेकर के आयो।।
काल नेम पहुंचाया धाम।
पतितपावन सीताराम ।।
84 भक्त भरत ने बाण चलाया।
चोट लगी हनुमत लंगड़ाया।।
मुख से बोले जय सिया राम।
पतितपावन सीताराम ।।
85 बोले भरत बहुत पछताकर।
पर्वत सहित बाण बैठाकर।।
तुम्हे मिला दूं राजा राम।
पतितपावन सीताराम ।।
86 बूटी लेकर हनुमत आया।
लखन लाल उठ शीष नवाया।
हनुमत कंठ लगाये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
87 कुम्भकरन उठकर तब आया।
एक बाण से उसे गिराया।।
इन्द्रजीत पहुंचाया धाम।
पतितपावन सीताराम ।।
88 दुर्गापूजन रावण कीनो।
नौ दिन तक आहार न लीनो।।
आसन बैठ किया है ध्यान।
पतितपावन सीताराम ।।
89 रावण का व्रत खंडित कीना।
परम धाम पहुंचा ही दीना।।
वानर बोले जय सिया राम।
पतितपावन सीताराम ।।
90 सीता ने हरि दर्शन कीना।
चिन्ता शोक सभी तज दीना।।
हंस कर बोले राजा राम।
पतितपावन सीताराम ।।
91 पहने अग्नि परीक्ष पाओ।
पीछे निकट हमारे आओ।।
तुम हो पतिव्रता हे बाम।
पतितपावन सीताराम ।।
92 करी परीक्ष कंठ लगाई।
सब वानर सेना हरषाई।।
राज्य बिभीषन दीन्हा राम।
पतितपावन सीताराम ।।
93 फिर पुष्पक विमान मंगाया।
सीता सहित बैठे रघुराया।।
किष्किन्धा को लौटे राम।
पतितपावन सीताराम ।।
94 ऋषि पत्नी दर्शन को आई।
दीन्हीं उनको सुन्दरताई।।
गंगा तट पर आये राम।
पतितपावन सीताराम ।।
95 नन्दी ग्राम पवनसुत आये।
भगत भरत को वचन सुनाए।।
लंका से आए है राम।
पतितपावन सीताराम ।।
96 कहो विप्र तुम कहां से आए।
ऐसे मीठे वचन सुनाए।।
मुझे मिला दो भैया राम।
पतितपावन सीताराम ।।
97 अवधपुरी रघुनन्दन आये।
मन्दिर-मन्दिर मंगल छाये।।
माताओं को किया प्रणाम।
पतितपावन सीताराम ।।
98 भाई भरत को गले लगाया।
सिंहासर बैठे रघुराया।।
जग ने कहा, है राजा राम।
पतितपावन सीताराम ।।
99 सब भूमि विप्रों को दीनो।
विप्रों ने वापस दे दीनो।।
हम तो भजन करेंगें राम।
पतितपावन सीताराम ।।
100 धोबी ने धोबन धमकाई।
रामचन्द्र ने यह सुन पाई।।
वन में सीता भेजी राम।
पतितपावन सीताराम ।।
101 बाल्मीकि आश्रम में आई।
लव व कुश हुए दो भाई।।
धीर वीर ज्ञानी बलवान।
पतितपावन सीताराम ।।
102 अश्वमेघ फिर किन्हा राम।
सीता बिनु सब सूने काम।।
लव कुश वहां दियो पहचान।
पतितपावन सीताराम ।।
103 सीता राम बिना अकुलाई।
भूमि से यह विनय सुनाई।।
मुझको अब दीजो विश्राम।
पतितपावन सीताराम ।।
104 सीता भूमि माहीं समाई।
सुनकर चिन्ता करी रघुराई।।
ब्रहमचारी बन गए है राम।
पतितपावन सीताराम ।।
105 राम राज्य में सब सुख पावें।
प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें।।
चोरी जारी का नहीं काम।
पतितपावन सीताराम ।।
106 ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता।
राज कीन्ही श्री लक्ष्मी कंता।।
फिर बैकुन्ठ पधारे राम।
पतितपावन सीताराम ।।
107 अवधपुरी बैकुन्ठ सिधाई।
नर नारी सबने गति पाई।।
शरनागत प्रतिपालक राम।
पतितपावन सीताराम ।।
108 ‘‘श्याम सुन्दर’’ ने लीेला गाई।
मेरी विनय सुनो रघुराई।।
भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम।
पतितपावन सीताराम ।।
यह माला पूरी हुई।
मनका एक सौ आठ।।
मनोकामना पूर्ण हो।
नित्य करे जो पाठ।।
आरती श्री राम चन्द्र जी की
जगमग जगमग जोत जली है।
राम आरती होन लगी है।।
भक्ति का दीपक प्रेम की बाती।
आरती संत करें दिन राती।।
आनन्द की सरिता उभरी है।
जगमग जगमग जोत जली है।
आरती हनुमत के मन भावे।
राम कथा नित शंकर गावे।।
सन्तों की ये भीड़ लगी है।
जगमग जगमग जोत जली है।।
श्री राम मनका 108, Ramayan Manka 108, Shree Ram Ramayan
Manka ...,रामायण - मनका 108
No comments: