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चैाथे अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता चैाथे अध्याय के पाठी के देह स्पर्श से बेरियों की हुई मुक्ति

 
 चैाथे अध्याय का माहात्म्य  - श्रीमद् भगवद् गीता 

चैाथे अध्याय के पाठी के देह स्पर्श से बेरियों की हुई मुक्ति



 भगवान् बोले, हे लक्ष्मी! जो पुरूष गीता जी का पाठ करते है तिनके छुने मात्र से अधम देह से छुटकारा पाकर विवेक को प्राप्त होते है। लक्ष्मी जी ने पूछा - हे महाराज! श्री गीता जी के पाठ करने वाले को छूकर कोई जीव मुक्त भी हुआ है? तब श्री भगवान् जी ने कहा - हे लक्ष्मी! तुम को मुक्त हुए पुरूष की पुरातन कथा सुनाता हूं। भागीरथी गंगा के किनारे श्री काशीनगर है। वहां एक वैष्णव रहता था। वह श्री गंगा जी में स्नान कर श्री गीता जी के चैथे अध्याय का पाठ किया करता था। उस वैष्णव के पास तप ही धन था। एक दिन वह साधु वन मे गया वहां बेरी के दो वृक्ष थे। वह साधु उनकी छाया में बैठ गया और बैठते ही उसको निद्रा आ गई। एक बेरी से उसके पांव लगे और दूसरे बेरी के साथ सिर लग गया तो दोनों बेरियां आपस में कांप कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं। उनके पते सूख गये। परमेश्वर के कहने से वे दोनो बेरियां ब्राहाण के घर जा पुत्रियां हुई। हे लक्ष्मी जी! बड़े पुण्य संचित कर मनुष्य देह मिलती है, दोनो लड़कियों ने उग्र तप करना प्रारम्भ किया। 



        जब दोनों बड़ी हुई तब उनके माता-पिता ने कहा, हे पुत्रियो! हम तुम्हारा विवाह करते है। तब उन दोनो ने उतर दिया हम विवाह नहीं करती। उनको अपने पिछले जन्म की सब बातें याद थी। वे पवित्र जाति में जन्मी थी, उन्होने कहा कि हमारे मन में एक कामना है, यदि ईश्वर उसे पूर्ण करे, तब बहुत भली बात है। उनके मन में यही था कि वह साधु जिसके स्पर्श करने से हमारी अधम देह छूट के यह देह मिली है, वह हमें मिले। इतना विचार कर उन दोनों लड़कियांे ने माता-पिता से तीर्थयात्रा करने की आज्ञा मांगी तो माता-पिता ने आज्ञा दे दी तथा उन दोनो कन्याओं ने माता-पिता के चरण छूकर प्रस्थान किया। तीर्थयात्रा करती करती काशी में पहुंची। वहां जाकर देखा कि वह तपस्वी बैठा है जिसकी कृपा से बेरी की देह से छूटी है। तब दोनों कन्याओं ने चरण छूकर दण्डवत की। हे संत जी! धन्य हो आपने हमको कृतार्थ किया है तब उस तपस्वी ने कहा, मै तो तुमको जानता नहीं, कन्याओं ने कहा हम आपको पहचानती है। हम पिछले जन्म में बेरियों की योनि में थी, आप एक दिन वन में आये।



    अधिक धूप के कारण बेरियों की छाया तले आ बैठे, लम्बा स्थान न होने से एक बेरी के चरण और दूसरी को सिर लगा। उसी समय हम बेरियों की देह से मुक्त हुई। अब विप्र के घर में जन्मी है, बड़ी सुखी है। आपकी कृपा से हमारी गति हुई। तब तपस्वी ने कहा कि इस बात की खबर न थी तुम्हारी क्या सेवा करूं। तुम ब्रहा रूप उतम जन्म श्री नारायण जी का मुख हो, तब उन कन्याओं ने कहा, हमको श्री गीता जी के चैथे अध्याय का फल दान करो, जिसको पाकर हम देव देही पाकर सुखी हों। तब उस तपस्वी ने चैथे अध्याय के पाठ का फल दिया और कहा कि तुम्हारी मुक्ति हो। इतना कहते ही आकाश से विमान आये, उन दोनो ने देव देह पाकर बैकुण्ठ को गमन किया। फिर तपस्वी को ज्ञान हुआ कि श्री गीता जी के चैथे अध्याय का ऐसा माहात्म्य है। तब श्री नारायाण जी ने कहा, हे लक्ष्मी! यह चैाथे अध्याय का माहात्म्य है जो मैने तुमको सुनाया।   

चैाथे अध्याय का माहात्म्य  - श्रीमद् भगवद् गीता   चैाथे अध्याय के पाठी के देह स्पर्श से बेरियों की हुई मुक्ति

इति श्री पुराणे सती-ईश्वरसंवादे उतराखंडे गीता माहात्म्य नाम चतुर्थी अध्यायः समाप्तः ।।

प्रदीप‘ श्री मद् भगवद् गीता

 


 

 
 

चैाथे अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता चैाथे अध्याय के पाठी के देह स्पर्श से बेरियों की हुई मुक्ति चैाथे अध्याय का माहात्म्य  - श्रीमद् भगवद् गीता   चैाथे अध्याय के पाठी के देह स्पर्श से बेरियों की हुई मुक्ति Reviewed by Shiv Rana RCM on March 09, 2021 Rating: 5

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