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सातवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता - सातवें अध्याय के पाठ के प्रभाव से सर्प रूपी शंकुकर्ण की मुक्ति The Greatness of the seventh chapter -7th Chapter -Shrimad Bhagavad Gita

 

 सातवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता -  सातवें अध्याय के पाठ के प्रभाव से सर्प रूपी शंकुकर्ण की मुक्ति  

The Greatness of the seventh chapter -7th Chapter -Shrimad Bhagavad Gita 

 

सातवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता -  सातवें अध्याय के पाठ के प्रभाव से सर्प रूपी शंकुकर्ण की मुक्ति  The Greatness of the 7th Chapter Shrimad Bhagavad Gita Liberation of the snake-like cone from the effect of the text of the seventh chapter

     छठे अध्याय के माहात्म्य को सुनकर श्री लक्ष्मी जी ने कहा - हे प्रभु! अब सातवें अध्याय के माहात्म्य को विस्तारपूर्वक हमारे कल्याण के लिए कहो। श्री लक्ष्मी जी का विशेष आग्रह देखकर श्रीविष्णु ने कहा - हे लक्ष्मी ! सातवें अध्याय का माहात्म्य कहता हूं - पटना नामक नगर में शंकुकर्ण नाम का वैश्य रहता था। उसके चार पुत्र थे। वैश्य व्यापार करने के लिए देश-देशान्तरो में जाया करता था। एक बार मार्ग में जाते हुए उसको काले गोपद-चिन्हधारी सर्प ने डस लिया। सो वह परलोक सिधार गया। उसके साथी उसकी दशा देखकी दुःखी हुए और उसका दाह-संस्कार करके उसका सम्पूर्ण धन को लेकर घर लौट आए। शंकुकर्ण के पुत्रों को उसका सब धन देकर उसके मरने का समाचार कह उसकी गति करने को कहा।

        

    वैश्य के चारों पुत्र पिता की दुर्गति को सुन कर बहुत दुःखी हुए और ब्राहा्रणों को बुला कर पूछा कि सर्प के काटने से जिसका मरण होता है उसे अच्छी गति कैसे मिल सकती है? ब्राह्राणों ने कहा कि जिसका मरण परदेश में हो या सर्प आदि जीवों के द्धारा हो उसको सद्गति नारायणी बलि से मिलती है। उसके पुत्रों ने शास्त्र की विधि से नारायणी बलि को किया। अनेक प्रकार का दान देकर ब्राहा्रण साधु तथा जाति भाईयों को विधिपूर्वक भोजन दिया। शेष धन जो बचा चारों भाईयों ने बांट लिया, परन्तु पिता के मरने की चिन्ता और शोक से वे रात-दिन व्याकुल रहने लगे। एक दिन शंकुकर्ण के साथी व्यापारियों से एक पुत्र ने पूछा कि जिस स्थान पर हमारे पिता को सर्प ने काटा है, वह स्थान मुझे भी बताओ। मैं उस सर्प को मार कर अपने पिता का बदला लूंगा। व्यापारियों ने उस वैश्यपुत्र को अपने साथ ले जाकर वह स्थान दिखा दिया।


    शंकुकर्ण का पुत्र वहां सांप के रहने का स्थान ढूंढने लगा। समीप में एक बांबी को देख कुदाली से खोदने लगा। तब उसमें से एक बड़ा विषधर सर्प निकला और पूछा - तू कौन है, मेरा स्थान क्यों खोदता है? तब उस वैश्य पुत्र ने कहा, मैं शंकुकर्ण का पुत्र हूं। जिस सांप ने मेरे पिता को काटा है, उसको मारूंगा। तब सांप ने कहा हे पुत्र! मैं शंकुकर्ण हूं, मुझे मत मार, अब तू घर जाकर मुझे इस अधम गति से छुडाने का उपाय कर। मेरे पूर्व जन्म के संस्कार से यह दशा हुई है। पुत्र ने अपने पिता के वचन सुनकर कहा, हे पिता जी! जो उपाय कहो सो तुम्हारी गति के लिए करें। सर्प ने कहा, हे पुत्र, किसी गीता पाठ करने वाले ब्राहा्रण को घर बुला कर भोजन वस्त्र आदि से प्रसन्न करके उससे गीता के सातवंे अध्याय के माहात्म्य का फल मेेरे लिए दिलाओ तो मेरा उद्धार हो। वैश्य-पुत्र पिता से विदा होकर अपने घर लौट आया और सब समाचार अपनी स्त्री को कह सुनाया। वैश्य-पुत्र की स्त्री ने कहा, जिस प्रकार गति हो वही उपाय करो। वैश्य-पुत्र ने नगर भर के गीता पाठ करने वाले ब्राहा्रणों को बुलाकर गीता के सातवें अध्याय का पाठ करा के ब्राहा्रणों को भोजन-वस्त्र दक्षिणा देकर आशीर्वाद लिया और सातवें अध्याय के माहात्म्य का फल लेकर पिता को दिया, उससे शंकुकर्ण सर्प योनि से छूट गया। दिव्य शरीर मिला और वह विमान पर चढ़ कर देवताओं के सामने अपने पुत्र का धन्यवाद देता हुआ बैकुण्ठ धाम को गया। विष्णु जी ने कहा - हे लक्ष्मी! इस सातवें अध्याय के माहात्म्य को जो पढ़ेगा और सुनेगा वह सद्गति को प्राप्त होगा।   

          

इति श्री पद्य पुराणे सती-ईश्वरसंवादे उतराखंडे गीता माहात्म्य नाम सप्तमो-अध्यायः समाप्तः।।

प्रदीप‘ श्री मद् भगवद् गीता


सातवें अध्याय के पाठ के प्रभाव
से सर्प रूपी शंकुकर्ण की मुक्ति   

 

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 सातवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता -  सातवें अध्याय के पाठ के प्रभाव से सर्प रूपी शंकुकर्ण की मुक्ति  

The Greatness of the seventh chapter -7th Chapter -Shrimad Bhagavad Gita


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सातवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता - सातवें अध्याय के पाठ के प्रभाव से सर्प रूपी शंकुकर्ण की मुक्ति The Greatness of the seventh chapter -7th Chapter -Shrimad Bhagavad Gita     सातवें अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता -  सातवें अध्याय के पाठ के प्रभाव से सर्प रूपी शंकुकर्ण की मुक्ति  The Greatness of the seventh chapter -7th Chapter -Shrimad Bhagavad Gita Reviewed by Shiv Rana RCM on April 11, 2021 Rating: 5

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