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श्रीमद् भगवद् गीता पांचवें अध्याय का माहात्म्य -- गीता पाठी के सिर के जल के स्पर्श से तोती और गीध की मुक्ति,

 श्रीमद् भगवद् गीता
पांचवें अध्याय का माहात्म्य  

 


भगवान् बोले, ’’हे लक्ष्मी! अब पांचवें अध्याय का माहात्म्य सुन-पिंगला नामक एक ब्राहा्रण अपने धर्म से भ्रष्ट हो गया था। वह कुसंग में पड़ गया। मांस, मछली खाता, मदिरा पान करता और जुआ खेलता। जब ब्राहा्रण के भाई-बंधुओं ने उसे धिक्कारकर त्याग दिया तो वह किसी और नगर में चला गया। दैवयोग से वह ब्राह्राण एक राजा के यहां नौकरी करने लगा। राजा के पास बैठकर वह दूसरे लोगों की चुगलियां किया करता था। इसी प्रकार जब बहुत दिन बीत गए तब राजा से चुगलियां करके वह धनवान हो गया। तब उसने अपना विवाह कर लिया। पर स्त्री व्यभिचारणी आई। जैसा वह था, वैसी ही स्त्री आई। जो कुछ वह ब्राहा्रण कहे सो वह न करे। ब्राहा्रण कहे तू बाहर जा, वह कहे नहीं। जहां उसका जी चाहे वह जावे, भर्ता को जाने नहीं। वह कल्पा करता और स्त्री को मारता। एक दिन उस स्त्री को बड़ी मार पड़ी, उस स्त्री ने दुःखी होकर अपने भर्ता को विष दे दिया। वह ब्राहा्रण मर गया और उसने गीध का जन्म पाया। कितने काल पीछे वह स्त्री भी मर गई। उसने तोता का जन्म पाया। वह जिस तोते की स्त्री हुई, वह एक वन में रहता था।


    एक दिन उस तोती ने तोते से पूछा -    ’’हे तोते! तूने तोते का जन्म क्यों पाया?‘‘ तब उस तोते ने कहा- ’’हे तोती! मैं पिछले जन्म की वार्ता कहता हूं, सुन, मैं पिछले जन्म में ब्राहा्रण था। अपने गुरू की आज्ञा नहीं मानता था। मेरा गुरू बड़ा विद्यावान था। उसके पास और विद्यार्थी भी रहते थे। जब गुरूजी किसी और विद्यार्थी को पढ़ाते तो मैं उनकी बात में बोल पड़ता, उन्होंने मुझे कई बार डांटा भी, मगर मैं नहीं माना। तब गुरू जी ने मुझको श्राप दिया कि जा तू तोते का जन्म पावेगा। इस कारण से मैंने तोते का जन्म पाया। अब तुम कहो किस कारण से तोती हुई।’’


        उसने कहा-’’मैं पिछले जन्म में ब्राहा्रणी थी। जब ब्याही गई तब भर्ता की आज्ञा नहीं मानती थी। भर्ता ने मुझे मारा। एक दिन मैंने भर्ता को विष दे दिया। वह मर गया। जब मेरी देह छूटी तब बड़े नरक में मुझे गिराया, कई नरक भोगकर अब मुझे तोती का जन्म मिला।’’ यह सुनकर तोते ने कहा-’’तू बहुत बुरी है, जिसने अपने भर्ता को ही विषय दिया।’’ तोती ने कहा-’’ नरकों के दुःख भी मैंने ही सहे है। अब तो तुझे भर्ता जानती हूं।’’ एक दिन वह तोती वन में बैठी थी। तभी वह गीध वहां आया, तोती को उस गीध ने पहचाना कि यह तो वही मेरी भार्या है, जिसने मुझे विष दिया था। वह गीध तोती को मारने चला। आगे तोती पीछे गीध। जाते-जाते तोती थक कर एक श्मशान भुमि में गिर पड़ी। वहां एक साधु को दाह दिया गया था। उस साधु की खोपड़ी वर्षा के जल के साथ भरी पड़ी थी। तोती उसमें गिरी। इतने में गीध आया और उस तोती को मारने लगा। उस खोपड़ी के जल के साथ उनकी देह धोई गई। वह आपस में लड़ते-लड़ते मर गये। अधम देह से छूटकर देवदेही पाई। विमान आये, तिन पर बैठकर वैकुण्ठ को गये। तब तोती ने पूछा-’’हे गीध ऐसा कौन सा पुण्य किया जो वैकुण्ठ को चले है?’’ गीध ने कहा-’’हमने तो इस जन्म में कोई पुण्य नहीं किया। मैं इस पुण्य को नहीं जानता। ’’इतने में दोनों धर्मराज की पुरी में गये।


        धर्मराज ने पूछा - ’’क्यों रे गीध! तू पीछे कौन था?’’ उसने कहा- ’’ब्राहा्रण था, मुझे अपने भाईयों ने देश निकाला दिया। मैं दुसरे देश में जा बसा। वहां मैंने विवाह किया। दुराचारिणी स्त्री मिली। उसने मुझे विष देकर मारा और वह मरकर तोती हुई, मैं गीध हुआ। मैं इसको पहचान कर मारने लगा। वहां एक श्मशान में मनुष्य की खोपड़ी जल के साथ भरी हुई थी उसमें तोती गिरी। मैं भी वहां पहुंचा। उसका जल हम दोनो को स्पर्श हुआ और तत्काल हमारी देह छुटी। देव देही पाई। विमान पर चढ़कर हम दोनों को वैकुण्ठ को ले चले है। यह कौतुक हमको कुछ मालुम नहीं हुआ।’’ तब धर्मराज ने कहा, वह खोपड़ी एक साधु की थी। वह खोपड़ी परम पवित्र थी। उसके स्पर्श से तुम वैकुण्ठवासी हुए हो और अपने पार्षदो को धर्मराज ने आज्ञा दी कि जा प्राणी श्री गंगा जी का स्नान करके गीता का पाठ करते हैं, तिनका मेरे पूछे बिना वैकुण्ठ को ले जाया करो। जो सन्तों की सेवा करते हैं, तिनको मेरे पूछे बिना वैकुण्ठ ले जाया करो।’’ तब पार्षद दोनो को वैकुण्ठ ले गये। श्री नारायण जी ने कहा-’’ हे लक्ष्मी! यह गीता जी के पांचवें अध्याय का माहात्म्य है, जो तुमने श्रवण किया है।   


इति श्री पद्य पुराणे सती-ईश्वरसंवादे उतराखंडे गीता माहात्म्य नाम पंचमी अध्यायः समाप्तः ।।

प्रदीप‘ श्री मद् भगवद् गीता


श्रीमद् भगवद् गीता पांचवें अध्याय का माहात्म्य -- गीता पाठी के सिर के जल के स्पर्श से तोती और गीध की मुक्ति, श्रीमद् भगवद् गीता पांचवें अध्याय का माहात्म्य --  गीता पाठी के सिर के जल के स्पर्श से तोती और गीध की मुक्ति,  Reviewed by Shiv Rana RCM on March 18, 2021 Rating: 5

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