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वृहस्पतिवार व्रत की कथा - Vrahaspati Devta Ji Ki Vrat Aur Katha -बृहस्पतिवार व्रत कैसे करें?

 

 वृहस्पतिवार व्रत की कथा



बृहस्पतिवार व्रत कैसे करें?

  इस दिन पीली गाय के घी से बनाई गए पदार्थो से ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए इस दिन पीली वस्तुओं के दान तथा भक्षण का विशेष महत्व है इस दिन पुरषों को बाल तथा दाढ़ी नहीं बनवानी चाहिए स्त्रियों को बिना सिर भिगोये स्नान करके कदली वृक्ष की पूजा करनी चाहिए क्षत्रियों में गाहकवार तथा चंदेल इस दिन कोई शुभ यात्रा नहीं करते गुरु वृहस्पति की कहानी सुनकर दानादि देना चाहिए 

वृहस्पतिवार व्रत की कथा 

बृहस्पतिवार व्रत कैसे करें?

 

कहते है किसी समय एक नगर मैं एक बहुत बारे व्यापारी रहा करता था वह जहाजों में माल लदवाकर दूसरे देशो को भेजा करता था और खुद भी जहाजों के साथ दूर दूर के देशो को जाया करता था और इस तरह खूब धन कमा लाता था उस की गृहस्थी खूब मजे से चल रही थी वह दान भी खूब दिल खोलकर करता था और उसका इस तरह से दान देना उसकी स्त्री को बिलकुल पसंद नहीं था वह किसी को एक दमड़ी देकर भी खुश नहीं थी एक बार जब वह सौदागर माल से जहाज को भरकर किसी दूसरे देश को गया हुआ था तो उस के बाद वृहस्पति देवता जी साधु रूप धारण करके घर में उसकी पत्नी के पास पहुंचे और भिक्षा की याचना की उस व्यापारी की पत्नी के वृहस्पति देवता से कहा महात्मा जी मैं तो इस दान पुण्य से बहुत तंग आ गयी हूँ मेरा पति अपना सारा धन दान में व्यर्थ ही लुटाता है अब आप कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे हमारा सारा धन नष्ट हो जाये इससे न धन लूटेगा और न ही मुझे दुःख होगा वृहस्पति देवता जी ने कहा देवी तुम भी बड़ी विचित्र हो ? धन और संतान तो सभी चाहते है पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर मैं भी होनी चाहिए यदि तुमहारे पास अत्यधिक धन है तो इससे तुम दिल खोलकर पुण्य कार्य करो भूखो को भोजन खिलाओ, प्यासों को पानी पिलाओ, यात्रिओं के लिए धर्मशालयें बनवाओ, कितने ही निर्धन की कुंवारी कन्यायें धन के अभाव से बिना व्याही बैठी है उनका विवाह सम्पन करवाओ और भी कई पुण्य कार्य ऐसे है जिनको करके तुम्हारा लोक परलोक सार्र्थक हो है लेकिन व्यापारी की स्त्री बड़ी ढींठ थी उसने  महात्मा जी मैं इस संबंध मैं आपकी कोई बात नहीं सुनना चाहती मुझे ऐसे धन की बिलकुल आवश्यकता नहीं है जो की मैं दूसरों को बांटती फिरुँ वृहस्पति देवता बोले यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो फिर ऐसा ही होगा तुम अब ऐसा करना की सात वृहस्पतिवार को घर को लीप कर पीली मिटी से अपने केशों को धोना, भोजन मैं मास तथा मदिरा ग्रहण करना, भट्टी चढ़ाकर कपड़े धोना, बस तुम्हारा धन नष्ट हो जायेगा और इतना कहने के पश्चात् वृहस्पति देवता अंतर्धान हो गये |  उस औरत ने जो की श्री वृहस्पति देवता को साधु समझी होए थी, उनके कहे अनुसार सात वृहस्पति वैसे ही किया केवल छ: वृहस्पति ही बीतने पर उस स्त्री का सम्पर्ण धन नस्ट हो गया और वह स्वयं भी परलोक सिधार गयी।  उधर उसका पति का माल से भरा हुआ जहाज समुन्दर मैं डूब गया और उसने  बड़ी मुश्किल से लकड़ी के तख्ते पर बैठकर अपनी जान बचाई खैर वह रोता धोता किसी न किसी तरह अपने नगर मैं वापिस पंहुचा।  वहां आकर उसने देखा की उसका सब कुछ नष्ट हो गया है और उसकी छोटी लड़की बैठी आंसू बहा रही है।  उस व्यापारी ने अपनी लड़की को तसली देकर चुप कराया और उससे सब समाचार पूछा।  लड़की ने अपने पिता को उस साधु (वृहस्पति) वाली पूरी कहानी सुना दी।  उसने लड़की को शांत किया और भगवन की करनी पर बड़ा प्रसन हुआ अब प्रतिदिन जंगल मैं जाकर वहां से लकड़ियां चुन कर लाता और उन्हें नगर मैं बेचकर अपनी जीविका चलने लगा।  मगर धन के आभाव के कारन बहुत दुखी था कयोंकि गुजरा बड़ी मुश्किल से चलता था।  एक दिन उसकी लड़की  ने अपने पिता से दही खाने की इच्छा प्रकट की, लेकिन उसके पास एक पैसा भी नहीं था जो उसको दही लेकर देता। वह उसे आश्वासन  देकर जंगल में जाकर एक वृक्ष के नीचे बैठकर अपनी पूर्ब दशा का विचार कर रोने लगा? उस दिन वृहस्पतिवार का दिन था।  वृहस्पति देवता उसकी अवस्था देखकर साधु का भेष धारण करके वहां आ पहुंचे और उस व्यापारी के पास आये और कहने लगे लकड़हारे तू इस जंगल मैं किस चिंता मैं बैठा है व्यापारी ने उतर दिया, महाराज आपसब कुछ जानने वाले है।  इतना कहकर उसने अदरकंठ और भीगी आँखों से वृहस्पति जी को अपनी सारी आप बीती सुनादी वृहस्पति देवता जी ने कहा के तुम्हारी पत्नी ने वृहस्पति के दिन भगवान का अपमान किया था जिस कारन से तुम्हारा यह हल हुआ है लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता न करो।  भगवान तुम्हे पहले से अधिक धनवान करेंगे तुम मेरे कहे अनुसार वृहस्पति के दिन वृहस्पति जी का पाठ किया करो।  दो पैसे के चने और मुनाका मंगवा कर जल के लोटे मैं थोड़ी सी शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद परिवार के सब सदस्यों को तथा सुनने वालों को बाँट देना और खुद भी अमृत पान किया करो प्रसाद खाया करो तो भगवान तुम्हारी सारी कामनाये पूरी करेंगे।  साधु को प्रसन देखकर उस व्यापारी  महाराज ! मुझे लकड़ियों में  से तो इतना लाभ नहीं  कि दो पैसे की दही लेकर भी अपनी एकलौती कन्या को खिला सकूँ उसको मैं हर रोज झूठे आश्वासन देकर टाल आता हूँ|  और इसलिए  मैं इस  समय व्याकुल होकर बैठा हुआ था वृहस्पति देवता ने कहा भगतजन तुम चिंता मत करो वृहस्पति जी के दिन  शहर में लकड़ियां बेचने  के लिए  जाना  तुमको उस दिन  लकड़ियों में चार पैसे अधिक मिलेंगे जिससे तुम दो पैसे की दही लेकर अपनी कन्या को खिलाना  और दो पैसे का मुनक्का और चने लाकर वृहस्पति देवता जी की कथा करना जल में जरा सी शक्कर डालकर  बनाना  का प्रसाद सब में बांटना   और  खुद  भी  खाना  तो  तुम्हारे    सब  मनोरथ  सिद्ध  हो जायेंगे  इतना कहकर  वृहस्पति  देवता   अंतर्ध्यान  हो गये धीरे  धीरे  वृहस्पति का दिन भी  नजदीक आ  पहुंचा  व्यपारी ने  जंगल में से लकड़िया  इकट्ठी  की और शहर  में   बेचने  का लिया आया  उसको उस दिन चार पैसे  अधिक मिले जिसमे  दो पैसे   दही  लेकर उसने अपनी लकड़ी को दी दो पैसे का चने और मुन्नका लेकर अमृत बनाकर प्रसाद बता और प्यार से खाया उसी दिन सा उसकी सुब कठिनाई दूर   होने  लगी लकिन अगला वृहस्पति को वृहस्पति देवता की कथा करवाना भूल गया   शुक्रवार को  उस नगर  के राजा  ने आज्ञा  दी की कल मैंने बहुत बड़े  आयोजन करवाना है अतएव कोई भी व्यक्ति  अपने घर में अग्नि न जलाये और समस्त जनता मेरे यहाँ आकर भोजन ग्रहण करे जो इस आदेश की अवहेलना करेगा उसे सूली पर लटकाया जायेगा राजा की आज्ञानुसार अगले दिन सब लोग राजा के महल में भोजन करने के लिए गए लेकिन वह व्यापारी और उसकी लड़की तनिक विलम्ब से पहुंचे अतएव राजा ने उन  दोनों को अपने 









महल के अंदर ले जा कर भोजन करवाया जब वह पिता पुत्री भोजन करके वापिस आ रहे थे तो महारानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी जिस पर नौलखा हार टंगा हुआ था उस खूंटी पर अब हार नहीं था उसको विश्वास हो गया के उसका हार लकड़हारे और उसकी लड़की ही ले गए है तत्काल सिपाहीयो को बुला कर बाप बेटी को कैद में डाल दिया कैदखाने में पड़कर दोनों बाप बेटी अत्यंत दुखी हो गए वहां इन्होने वृहस्पति देवता जी का समरण  किया तभी वृहस्पति देवता वहां प्रगट हो गए और कहने लगे के भगतजन तुम पिछले साप्ताह वृहस्पति देवता जी की कथा करना भूल गए थे इसलिए तुम्हारा यह हाल हो गया है अब तुम किसी प्रकार की चिंता न करो वृहस्पति जी के दिन कैदखाने के दरवाजे पर दो पैसे पड़े दिखाई देंगे तुम वह पैसे उठाकर चने और मुनक्का मांग लेना फिर विधि पूर्वक वृहस्पति देवता जी का पूजन तथा कथा करवाना बस फिर तुम्हारे सब दुःख दूर हो जायेंगे और जब वृहस्पति जी का दी आया   तो उस  व्यपारी को जेल  द्वार के पास दो पैसे पड़े मिले बहार सड़क पर एअक औरत जा रही थी व्यपारी ने  कहा की वह बाजार से उसका दो पैसे  के चने और मुन्नके ला दे  वृहस्पति देवता  की कथा  करवा सकू उस  कहा में अपनी बहु के  कपड़ा  रही हो अंत   में  वृस्पति भगवन की क्या जानु इतना कह कर वह औरत वह से चली गयी  थोड़ीदेर  के पश्चात वह एक और स्त्री नकली वयापारी ने उसको बुला कर प्राथना की बहन तू मुझे बाजार से दो पैसे   के चने और  मुन्नका ला दे  मुझे बृहस्पति देवता की कथा  और प्रसाद बाटना है वह स्त्री वृहस्पति देवता का नाम सुन कर   गद गद  हो कर बोली बलिहारी जाऊ वीर भगवन के नाम में तुमअभी मुन्नका और चने  लेकर देती   हूं मेरा एकलौता बेटा मर गया है तो  उसके लिए कफ़न लेने  जा रही थी मगर पहले तुम्हारा  काम करुँगी और उसके बाद बेटा  के लिया कफ़न लाऊंगी फिर उस वयापारी से दो पैसे  लिए  और बाजार से चने  मुन्नका ले आई   और स्वयं  भी वृहस्पति कथा  समाप्त होना  वह कफ़न लेकर  घर को रवाना  हुई ढकते क्या है की लोग उसके  बेटे  लाश को लेकर राम नाम सत्य है  कहते हुआ शमशान की और ले जा रहे है स्त्री  लोगो से कहा भाई मुझे   लाडले   मुख तो देख  लेने दो  लोगो ने अर्थी को जमीं पर रखा स्त्री ने अपना बेटे  के मुख में प्रसाद और अमृत डाला प्रसाद और अमृत के मुख में पड़ने के साथ  ही लड़का   उठ  खड़ा  हुआ  और अपनी माता के गले से  लगा कर मिला दूसरी स्त्री जिसने के बृहस्पति देवता का निरादर किया था जब वह  अपने पुत्र के विवाह के  लिए  कपडे  लेकर वापिस लौटी और वह जब घोड़ी पर सवार होकर बजे गाजे से बारात में निकला तो घोड़ी ने ऐसी छलांग मारी की वह जमीन पर आ गिरा बुरी  घायल हो गया और कुछ ही क्षण के पश्चात् मर गया तब वह स्त्री रो रोकर वृहस्पति देवता से कहने लगी हे देव मेरा अपराध क्षमा करो उसकी प्राथना सुनकर भगवान् श्री  वीर साधु का रूप धारण कर वही आये उस स्त्री से  लगे देवी अधिक रौल मचाने की कोई आवश्यकता नहीं तुमने वृहस्पति देवता का निरादर किया था जिसका परिणाम तुम्हे यह मिला  तुम जेलखाने जाकर उस भगत से क्षमा  याचना करो  उससे वृहस्पति देवता  सुनो इससे सब ठीक हो जायेगा वह स्त्री फिर जेलखाने पहुंची और मुख्य द्वार के पास जाकर उस व्यापारी से मिली हाथ जोड़कर कहने लगी भगतजन मैंने तुम्हारा कहा नहीं  माना और तुम्हे मुनका और चना नहीं दिए इससे वृहस्पति देवता मुझसे रुष्ट हो गए जिसके कारण मेरा एकलौता लड़का घोड़ी पर से गिर कर मर गया उन्होंने कहा माता तू चिंता मत कर वृहस्पति देवता सब कल्याण करेंगे तुम अब अगले वृहस्पति को आकर वृहस्पति देवता  की कथा सुन्ना तब तक अपने लड़के  के  शव को फूल ,  इतर  और    घी अदि वस्तुओ में डालकर रख दो  स्त्री ने ऐसा हे किया वृहस्पति का दिन भी आ   पंहुचा  दो   पैसे  के   मुन्नका और चने लेकर ,पवित्र जल का लोटा भरकर जेल के  द्वार  पर आई और   श्रद्धा के साथ वृहस्पति देवता की कथा सुनी जब कथा समाप्तः हुई तो अमृत व् प्रसद लेकर अपने मरे  हुए  पुत्र के मुख में डाला  यकायक उसको  सांस आने  उठ कर खड़ा हो गया और पुत्र को लेकरवह प्रसन्ता  पूर्वक अपने घर को रवाना हुई और वृहस्पति देवता के  गुण गाने लगी और उसी दिन  रात में राजा को  वृहस्पति देवता ने स्वप्न मे दर्शन दिये और कहा  हे राजन तूने जिस व्यापारी और उसकी लड़की को जेल मे बंद कर रखा है   वह दोनों निर्दोष है अब दिन निकलने के साथ दोनों को जेल से  रिहा  कर दो तेरी रानी का  नौलखा  हार उस खूटी पर लटका है दिन निकला तो रानी  ने अपना हार खूटी पर लटका हुआ देखा  ने उस व्यापारी और   उसकी  लड़की दोनों को रिहा करके वस्त्र धारण करवाकर अपराध के लिये क्षमा  याचना  की और उसको अपना आधा राज पात देकर और उसकी लड़की का उच्च कुल मे विवाह संपन्न करवाकर दहेज मे अनमोल हीरे  जवाहरात दिये   वृहस्पति देवता   ऐसे ही है जै सी मनोकामनाए  होती है वह पूर्ण करते है जो कोई श्रद्धा व् प्रेम  से वृहस्पति देवता की कथा  पढेगा अथवा दुसरो को  पढ़ कर सुनाएगा उसकी सब मनोकामनाए पूरी  होगी   






                                                                                                   

वृहस्पतिवार व्रत की कथा - Vrahaspati Devta Ji Ki Vrat Aur Katha -बृहस्पतिवार व्रत कैसे करें? वृहस्पतिवार व्रत की कथा - Vrahaspati Devta Ji Ki  Vrat Aur Katha -बृहस्पतिवार व्रत कैसे करें? Reviewed by Shiv Rana RCM on January 03, 2021 Rating: 5

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