दूसरे अध्याय का माहात्म्य - श्रीमद् भगवद् गीता - दूसरे अध्याय का माहात्म्य सुनने से शेर, बकरी और विष्णु शर्मा को मिली मुक्ति
श्रीमद् भगवद् गीता
दूसरे अध्याय का माहात्म्य
दूसरे अध्याय का माहात्म्य सुनने से शेर, बकरी और विष्णु शर्मा को मिली मुक्ति
लक्ष्मी जी ने कहा, प्रथम अध्याय का माहात्म्य जो आपने सुनाया, उसके सुनने से मेरी इच्छा अब दूसरे अध्याय के माहात्म्य को भी सुनने की हो रही है। नारायण जी ने कहा, हे प्रिय! सुनो- दक्षिण दिशा में इन्द्रपुर नाम का एक नगर था। उसमें एक विष्णु शर्मा नामक ब्राहा्रण रहता था। वह वेदशास्त्र जानने वाला बड़ा सदाचारी था। जो कोई साधु-महात्मा ब्राहा्रण के घर आते, उनका अतिथि-सत्कार करता और धर्म के विषय में प्रश्न करता था। एक दिन उसके द्धार विचरते हुए एक ब्रहा्रचारी आए। ब्राहा्रण ने उनकी बहुत सेवा की और विनयपूर्वक कहा, हे महात्मन्! मुझे आप ब्रहा्रज्ञान के पाने का उपदेश करो, जिससे मेरा कल्याण हो। ब्रहा्रचारी ने कहा - हे ब्रहा्रज्ञानी! आपने अच्छा प्रश्न किया है। उसका उतर गीता के दूसरे अध्याय में है। वह मैं आपसे कहता हूं।
उसको जानने से तुम्हारा कल्याण होगा। विष्णु शर्मा ने कहा, हे ब्रहा्रचारी जी! इस दूसरे अध्याय के सुनने से कोई पहले भी मुक्त हुआ हो तो उसका वृतान्त सुनाइए। ब्रहा्रचारी जी बोले - मैं तुम्हें एक पुरातन कथा सुनाता हुं। एक वन में, जहां मैं तप करता था, वहां अबाली नाम का चरवाहा प्रतिदिन बकरियांे को चराने आया करता था। एक दिन मैं भजन कर रहा था। थोड़ी दूर एक ओर सिंह/शेर बैठा था और पास ही में मृगों का झुण्ड किलोल कर रहा था। उसी समय अबाली बकरियांे को वन में चरने के लिए छोड़ कर मेरी कुटिया पर आया। वहां सिंह/शेर बैठा पाकर बहुत डरा और चकित होकर सोचने लगा कि मृगों के बच्चों को सिंह/शेर क्यों नहीं पकड़ता। इतना सोचकर वह डर से चीखने लगा। मेरी समाधि को खुल देखकर उसने पुकारा। जब मेरी दृष्टि उस पर पड़ी, उस समय वह कांप रहा था।
उस अबाली को मैंने पास आने के लिए कहा। यद्यपि पहले उसने आने की इच्छा नहीं की, परन्तु मेरे उत्साह दिलाने पर वह मेरे पास आया और प्रणाम कर बड़ी नम्रता से पहले अपनी सम्पूर्ण अवस्था कह सुनाई। तब कहा कि महात्मा जी! यह सिंह/शेर इन हरिणों को क्यों नहीं खाता? मैंने उसस कहा कि यहा अहिंसा व्रत का फल है। जो मनुष्य अहिंसा व्रत का पालन करता है उसके पास आने वाले हिंसक जीव भी वैर-भाव को छोड़ देते है। इसलिए जो कुछ तुम देखकर आश्चर्य को प्राप्त हुए हो, वह मेरे अहिंसा व्रत का प्रभाव है। यह सुन अबाली ने कहा कि हे देव! मुझे ऐसी शक्ति दीजिए, जिससे मुझे किसी से डर न हो। तब मैंने उससे कहा कि तुम गीता जी के दुसरे अध्याय का पाठ सुनो। ऐसा कहकर मैंने ईश्वर, जीव और प्रकृति - इन तीनों का वर्णन जैसे गीता में है, कह सुनाया।
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