तीसरे अध्याय का माहात्म्य
प्रेत की तीसरा अध्याय सुनने से मुक्ति
भगवद गीता - तीसरे अध्याय का माहात्म्य
श्री विष्णु ने कहा-हे लक्ष्मी! तुमने दूसरे अध्याय का माहात्म्य सुना। अब मै तीसरे अध्याय का माहात्म्य सुनाता हुं। एक ब्राहा्रण नित्य ही खोटे कर्म /चोरी आदि किया करता था। कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हुई। खोटे कर्मो के कारण वह प्रेत योनि को प्राप्त हुआ। उसकी स्त्री गर्भवती थी और उसकी कोख से पुत्र उत्पन्न हुआ। जब बालक बड़ा हुआ तब अपनी माता से पिता के मरने का हाल पूछा। ब्रहा्रणी ने सब कह सुनाया। मेरे पिता की नीच योनि हुई होगी, इससे उनके उद्धार के लिए गयाजी जाए पिंडदान करूं तिससे निश्चय ही पिता जी सद्गति को प्राप्त होंग ऐसा विचार कर बालक गयाजी को चल दिया। बालक नित्य ही गीता का पाठ किया करता था। रास्ते में एक दिन पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर तीसरे अध्याय का पाठ किया। संयोग से उसका पिता भी प्रेत योनि को प्राप्त हो कर उसी पीपल पर निवास करता था। अपने पुत्र द्धारा किए गए तीसरे अध्याय के पाठ को सुनकर वह देवगति को प्राप्त हुआ और उसके पहले 7 पीढ़ी तक के पुरखा, जो नरक में पड़े दुःख भोग रहे थे, स्वर्ग को प्राप्त हुए।
बालक अपने पुरखों को स्वर्ग को जाता हुआ देख प्रसन्नता को प्राप्त हुआ इसी तरह ज्ञान-पूर्वक जैसे नौका को बनाकर मनुष्य सागर से पार उतर जाता है उसी प्रकार कर्म द्धारा मृत्युरूप इस असार संसार रूपी समुद्ध को तर कर मनुष्य ज्ञान द्धारा मोक्ष को प्राप्त होता है। हे लक्ष्मी! इस प्रकार ज्ञान और कर्म के रहस्य को जानकर कर्म करने वालों की परमगति होती है। इसलिए जो पुरूष इस अध्याय के गूढ़ तत्व को जानकर या उसके अनुकूल आचरण और पाठ करेगा वह अवश्य ही मोक्ष पद का प्राप्त होगा।
इति श्री पद्य पुराणे सती-ईश्वरसंवादे उतराखंडे गीता माहात्म्य नाम तृतीय अध्यायः समाप्तः।।
तीसरे अध्याय का माहात्म्य - प्रेत की तीसरा अध्याय सुनने से मुक्ति - भगवद गीता अध्याय
Reviewed by Shiv Rana RCM
on
March 07, 2021
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